दीवाली खुशियों का त्योहार है| चारों तरफ रोशनी और खुशहाली का माहॉल होता है| हर कंपनी में कर्मचारी अपने बोनस का इंतज़ार और अपने बॉस की दरियादिली की कामना करते हैं| इन सबसे दूर एक दुनिया है जहाँ इंजिनियर एक अलग ही ज़िंदगी बिताते हैं – खुशहाली से कोसों दूर| इंजिनियरिंग विद्यार्थी दीवाली की छुट्टियों में घर तो जाते ही हैं सिवाए उनके जो GATE या CAT आदि के लिए अपने पेन पेपर पर रगड़ रहे होते हैं|
घर पहुँचते ही धूल में सनी लाइट की लड़ी घरवाले अपने एलेक्ट्रिकल इंजिनियर बेटे के हाथों में ये कहकर थमा देते हैं की “बेटा अब तू फाइनल इयर में है| ये लाइट ठीक कर दे|” अब लड़का किस मुँह से बताए की जनाब circuits and systems के पेपर में बैक लाए थे जो दो साल से क्लियर ही नही हो रही| घरवाले सीना चौड़ा कर के पड़ोसियों को बोलके आते हैं की बेटा एलेक्ट्रिकल इंजिनियर है बिजली का काम मुफ़्त में कर देगा| कम से कम पड़ोसियों को तो लगेगा की लड़का किसी काम का है|
एक मेकॅनिकल इंजिनियर घर जाकर पिताजी के पैर छूता है तो पिताजी आशीर्वाद देने की जगह बाहर धूप में खड़े प्राचीन-कालीन स्कूटर की और इशारा करके उसे ठीक करने का आदेश दे डालते हैं| लड़का बेबस कभी अपने पिताजी को तो कभी स्कूटर को देखता है और ऑटोमोटिव इंजिनियरिंग का वो लेक्चर याद करता है जब उसे क्लास से बाहर निकाला गया था|
यही हाल है कंप्यूटर इंजिनियर का भी है| एक महीना कंप्यूटर खराब रहता है की बेटा होस्टेल से आके ठीक करेगा अपनी छुट्टी में| दरवाज़े पर ही उसके स्वागत में थपाक से हाथ में मदरबोर्ड थमा दिया जाता है| पड़ोस में रहने वालों को भी भनक लग जाती है की शर्मा जी के घर कंप्यूटर ठीक करने वाला आ गया है| रात को डिन्नर के टाइम पे माँ अगले दिन की आइटिनररी सुनाती हैं, “वर्मा जी, गुप्ता जी का कंप्यूटर फॉर्मॅट कर देना कल और मेहता जी के कंप्यूटर में कोई कार्ड वॉर्डलगाना है, ग्राफ कार्ड जैसा कुछ शायद|”
ना जाने क्यूँ लेकिन हिन्दुस्तान के मिड्ल क्लास में ये जो रूढ़िवादी (stereotypical) सोच बनी हुई है वो हँसी के काबिल तो ज़रूर है| जिस देश में एलेक्ट्रीशियन, मेकॅनिक और साइबर कैफ़े वालों से ज़्यादा इंजिनियर हैं वहाँ ऐसी सोच कुछ ज़्यादा आश्चर्यजनक नही कही जा सकती| फिर भी सभी इंजिनियर की और से *फेसपाम*| उम्मीद है दीवाली कुछ रौनक लेकर आए और इंजिनियर पर हो रहे ऐसे अत्याचार बंद नही तो कम तो अवश्य हो जायें|